प्रखंड क्षेत्र में सार्वजनिक एवं निजी तालाबों की स्थिति काफी दयनीय है . यहां ना तो जल संरक्षण के लिए सरकार द्वारा कोई मुहिम चलाई जाती है न ही सरकार के अभियान को धरातल पर उतारा जाता है. सरकार द्वारा जल जीवन हरियाली के तहत गांव, कस्बे टोले एवं हर जगह जल संरक्षण के लिए सरकारी आहर, पोखर, पईन को अतिक्रमण मुक्त करने एवं जल संरक्षण हेतु व्यापक रूप से अभियान चला रही है. जिसका नाम सरकार ने जल जीवन हरियाली दिया है. हालांकि यह अभियान की तो शुरुआत काफी जोशो जुनून में हुई थी लेकिन यह अभियान फाइलों में सिमट कर रह गई है. वही तिलौथू प्रखंड के विभिन्न गांव में जितने भी आहर पइन या पोखर है वह अस्तित्व विहीन होते जा रहे हैं या फिर वह सिर्फ बरसात की पानी स्टॉक करने के काम ही आते हैं. बरसात में भी इन आहर, पइंन पोखरों की पानी से सिंचाई नहीं हो पता है और गर्मियों के दिनों में यह सभी जलाशय बिल्कुल मृतप्राय नजर आते हैं. ऐसे में आखिर जल जीवन हरियाली का सपना कैसे सरकार सरकार हो पाएगा और जल संरक्षण कैसे हो पाएगा. इसका यही कारण है की नदी, तालाब, पोखरो की संख्या होने के बाद भी जिस पर लोगों द्वारा अप्रत्याशित रूप में अतिक्रमण कर लिया गया है जिसके कारण जलसंकट बरकरार है. जल जीवन हरियाली अभियान के तहत सभी आहर ,पइन, पोखर, नदी, तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए अभियान भी चलाया जाना था लेकिन यह अभियान सिर्फ फाइलों में दबकर रह गया. अतिक्रमणकारियों को सिर्फ नोटिस कर छोड़ दिया गया वहीं जल संरक्षण नहीं किए जाने के कारण प्रखंड क्षेत्र के कई गांव में गर्मी की शुरुआत होते ही जलस्तर भी पूरी तरह खिसकने लगा है तथा सिंचाई के लिए लोगों को पूर्णता बिजली पर आधारित रहनी पड़ती है. तिलौथू प्रखंड क्षेत्र में अगर बिजली ना हो तो यहां अकाल की स्थिति घोषित हो जाएगी क्योंकि यहां की सिंचाई व्यवस्था बोरिंग पर निर्भर रहती है . यहां के किसानों की जान बिजली होती है. अगर बिजली ना हो तो फिर यहां का खेती व सिंचाई व्यवस्था चौपट मानी जाएगी. इस संबंध में हुरका के पैक्स अध्यक्ष व पचवन विकास मोर्चा के अध्यक्ष रविरंजन सिंह उर्फ चुनचुन सिंह ने बताया कि हमारे द्वारा आहर पइन, पोखर को संरक्षित करने के लिए तथा इंद्रपुरी सोन नहर प्रणाली से सिंचाई हेतु पानी की व्यवस्था करने के लिए कई बार आरटीआई भी डाला गया है. जिसके तहत अभी तक संतोषजनक जवाब तो नहीं मिला है. इन्होंने बताया कि इंद्रपुरी सोन बराज नहर से सोन नहर संयोजक प्रणाली के तहत पटनवा होते हुए एक नहर की खुदाई की गई. उसी समय मेरे द्वारा पटनवा से इंद्रपुरी होते हुए हुरका के रास्ते तिलौथू प्रखंड में पंप कैनाल नहर की मांग की गई थी. जिस पर लघु सिंचाई विभाग से मुझे कोई जवाब नहीं मिला था. पूर्व से कई जगहों पर बंद पड़े लिफ्ट इरीगेशन के लिए भी हम लोगों द्वारा आरटीआई डाला गया था. जिस पर काम हुआ और विभाग ने लिफ्ट इरीगेशन को चालू तो कराया और इस के आधार पर तिलौथू प्रखंड क्षेत्र में लिफ्ट इरीगेशन के तहत पंप कैनाल नहर बनाने की मांग की गई थी लेकिन अब तक सरकार द्वारा इसको मूर्त रूप नहीं दिया गया है. तिलौथू प्रखंड में सोन नदी होकर गुजरती है लेकिन यहां के किसानों को पानी के लिए तरसना पड़ता है. जिन्हें बिजली पर निर्भर रहना पड़ता है. बोरिंग से सिंचाई करनी पड़ती है. सोन नदी के तटवर्ती इलाके में भी रहने वाले किसान बोरिंग से ही सिंचाई करके अपना फसल उगाते हैं. जो अपने क्षेत्र के लिए दुर्भाग्य है. तिलौथू प्रखंड क्षेत्र के बेलवई जलाशय, तुतला भवानी जलाशय, महादेव जलाशय, कशिश जलाशय के जल का अगर संरक्षण किया जाए तो तिलौथू व रोहतास के इलाके में इससे पूरे भूमि की सिंचाई संभव हो सकती है. तुतला भवानी धाम में अगर डैम जो बना है वह भी बिना काम का बना है. उससे किसान लाभ नहीं ले पाते हैं. अगर तुतला भवानी जलाशय का पानी स्टॉक कर उसे दो भागों में बांट दिया जाए तो तिलौथू प्रखंड के आधे से अधिक भूमि को सिंचित किया जा सकता है. अगर सरकार इन सभी जलाशयों के पानी रोक कर डैम निर्माण कर करती है तो सिंचाई के लिए जल प्रबंधन का उचित व्यवस्था हो जाएगा. हुरका गांव के समीप 10 एकड़ की भूमि में बहुत बड़ा जलाशय है जो गर्मियों में बिल्कुल सूखा पड़ा होता है तथा बरसात के दिनों में भी उसमें जमा पानी से किसी किसान को कोई लाभ नहीं हो पता.
क्या कहते हैं मत्स्यजीवी संघ के जिला अध्यक्ष.
रोहतास जिला के मत्स्य जीवी संघ के अध्यक्ष मुकेश चौधरी कहते हैं कि सभी आहार पईंन पोखरों की स्थिति बहुत ही दयनीय है. इसमें जल संरक्षण के लिए सरकार को विशेष अभियान चलाना चाहिए. जिसके कारण जल संकट गहरा गया है. इस प्रखंड के सभी जलाशयों में जल संरक्षण के लिए उपाय करना अति आवश्यक है.
क्या कहते हैं सीओ.
इस संबंध में सीओ हर्ष हरि का कहना है कि तिलौथू प्रखंड में सर्वे के अनुसार कुओं की संख्या सर्वजनिक स्थल पर 177 है जबकि रैयती भूमि पर अवस्थित कुओं की संख्या 1162 है वही निरीक्षण कर चिन्हित किए गए जल संचयन की संरचनाओं की संख्या सार्वजनिक स्थल पर 422 है जबकि निजी 62 है . इनमें जल संरक्षण के लिए अंचल से किसी भी तरह का योजना नहीं है. इसे बहुत पहले ही मत्स्यजीवी संस्था को हस्तांतरित कर दिया गया है. इसका सारा देखरेख मत्स्यजीवी विभाग के द्वारा ही किया जाएगा.
क्या कहते हैं जिला मत्स्य पालन पदाधिकारी .
जिला मत्स्य पदाधिकारी सत्येंद्र राम का कहना है कि आहर पइन पोखरों की देखरेख मत्स्य विभाग के द्वारा की जाती है मछली पालन को लेकर लेकिन इसके जीर्णोद्धार या जल संचयन के लिए विभाग के द्वारा किसी भी तरह का कोई योजना नहीं चलाया जाता है.