संसदीय क्षेत्र । कांग्रेस, जदयू, राजद के अलावे कभी जनसंघ भी था चुनावी मैदान में, बिक्रमगंज से लेकर काराकाट संसदीय क्षेत्र तक एनडीए का रहा है दबदबा
काराकाट हॉट सीट पर एक बार निर्दलीय प्रत्याशी को मिली थी जीत
बिहार (रोहतास ) लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में एक जून को काराकाट संसदीय क्षेत्र में मतदान होना है।
बिक्रमगंज के बाद काराकाट नाम से बने संसदीय क्षेत्र की राजनीति शुरू से जातीय समीकरण की मुरीद रही है। वर्तमान परिवेश में काराकाट
लोकसभा चुनाव में प्रमुख प्रत्याशियों की नजर स्वर्ण मतदाताओं पर है। बताया जाता है कि आजादी के बाद पहली बार जब चुनाव हुआ तो यह क्षेत्र शाहाबाद उत्तर पश्चिम कहलाता था। जहां एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस चुनावी मैदान में थी। आम
लोगों की बात कौन कहें चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं को भी शायद यह पता नहीं होगा कि वर्ष 1952 में पहली बार चुनाव में खड़े निर्दलीय कमल सिंह ने कांग्रेस की कलावती देवी को 1.6 प्रतिशत वोटों के अंतर से पराजित किया था। कभी जनसंघ भी था चुनावी मैदान में : संसदीय चुनाव में यहां अन्य राजनीतिक दलों के साथ जनसंघ भी चुनावी मैदान में भाग्य आजमाती रही है। कांग्रेस के रामसुभग सिंह और 1967 में शिवपूजन शाखी सांसद बने थे। वर्ष 1971 में भारतीय जनसंघ निकटतम प्रतिद्वंदी थी। 1977 में गैर कांग्रेसी गोलबंदी की
जीत में हिस्सेदार बना। 1989 में भाजपा को चौथा और 1991 में तीसरा स्थान आया। किंतु वर्ष 1996 में भाजपा ने बिक्रमगंज सीट तब समता पार्टी को सौंप दी थी। वर्ष 1977 में भारतीय लोक दल के
राम अवधेश सिंह को 59.6 प्रतिशत मत मिले। उन्होंने कांग्रेस के रामसुभग सिंह को 36.4 प्रतिशत वोटों के अंतर से पराजित किया। बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र में सहकारिता सम्म्राट कहे जाने वाले तपेश्वर सिंह की तृती बोलती थी। परिसीमन के बाद बदले भूगोल ने नवगठित काराकाट संसदीय क्षेत्र के सारे समीकरण को ध्वस्त कर
दिया। पहले चुनाव में जदयू की रही थी बढ़त। काराकाट संसदीय क्षेत्र में 2009 के पहले चुनाव में जदयू ने सभी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त हासिल करते हुए अपनी जीत दर्ज की व व मीना सिंह सांसद बनी। तब बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र की आखिरी सांसद मीना सिंह थी। बिक्रमगंज से सांसद रही पूर्व मंत्री कांति सिंह को भी नई परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ा।
“भौगोलिक संरचना”
वर्ष 2009 में औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्र नवीनगर, ओबरा, गोह और रोहतास जिले की डेहरी, काराकाट व नोखा को मिलाकर काराकाट लोक सभा क्षेत्र का गठन हुआ। इसके साथ ही बिक्रमगंज संसदीय क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त हो गया।
“निधन पर हुआ उपचुनाव”
बिक्रमगंज संसदीय क्षेत्र से पहली बार 2004 के चुनाव लड़ने वाले सहकारिता सम्राट तपेश्वर बाबू के पुत्र अजीत सिंह सांसद बने थे। किंतु वर्ष 2008 में सिवान में सड़क हादसे में सांसद अजीत कुमार सिंह की मौत के बाद उपचुनाव हुआ। जहां उनकी पत्नी मीना सिंह जदयू की उम्मीदवार थी।
“अब तक के क्षेत्र के सांसद”
■ 1952 कमल सिंह (निर्दलीय)
■ 1962 राम सुभग सिंह (कांग्रेस)
■1967 शिवपूजन शाखी (ससोपा)
■1971 शिवपूजन सिंह (कांग्रेस)
■ 1977 राम अवधेश सिंह (बालोद)
■ 1980 से 84 तपेश्वर सिंह (कांग्रेस)
■ 1989 से 91 राम प्रसाद सिंह (जद)
■ 1996 कांति सिंह (जनता दल)
■ 1998 वशिष्ठ नारायण सिंह (सपा)
■ 1999 काति सिंह (राजद)
■ 2004 अजीत कुमार सिंह (जदयू) ■ 2008 मीना सिंह (जदयू)
■ 2009 महाबली सिंह (जदयू) ■2014 उपेंद्र कुशवाहा (रालोसपा)
■ 2019 महाबली सिंह (जदयू)
■ 2024 अब देखना होगा कि किसके खता में जाता है।